Wednesday, April 29, 2020

संचयन- गिल्लू


                 




संचयन- गिल्लू – गृहकार्य (नोट-बुक कार्य)


   निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 60 - 70 शब्दों में लिखिए     (3  अंक)

       1. गिल्लू को मुक्त करने की आवश्यकता लेखिका ने कब महसूस की ?उसके लिए उन्होंने क्या       किया।
       2.  लेखिका महादेवी वर्मा को चौंकाने के लिए गिल्लू क्या करता था?

       3.   गिल्लू के जीवन के अंतिम समय का वर्णन कीजिए।

       4.    निरीह एवं मूक जीव जंतुओं के जीवन को संकट में डालने वाले स्वार्थी मनुष्यों को इस पाठ में से   क्या शिक्षा मिलती है?

        5.    पाठ के आधार पर  कौवे को एक साथ समादरित और अनादरित प्राणी क्यों कहा गया 
                             पाठ के प्रश्नोत्तर

संचयन पाठ-01 गिल्लू
1. सोनजुही में लगी पीली कली को देख लेखिका के मन में कौन से विचार उमड़ने लगे?
उत्तर:- 
सोनजुही की पीली कली मनमोहक होती है। लेखिका को विचार आया कि वह छोटा जीव लता की सघन हरीतिमा में छिपकर बैठ जाता था। उसका नाम गिल्लू था। लेखिका के निकट पहुँचने ही उनके कंधे पर कूदकर उन्हें चौंका देता था। तब लेखिका को कली की खोज रहती थी, पर आज उस लघुप्राण की खोज थी। लेखिका को गिल्‍लु से इतना लगाव हो गया था कि उसकी मौत के पश्‍चात भी वह उसे भुला नही पा रही थी ।
2. पाठ के आधार पर कौए को एक साथ समादरित और अनादरित प्राणी क्यों कहा गया है?
उत्तर:- 
कौआ बड़ा विचित्र प्राणी है। इसका कभी आदर किया जाता है तो कभी अनादर। श्राद्ध में लोग कौए को आदर से बुलाते हैं। ऐसा माना जाता है कि पितृ पक्ष में हमारे पुरखे हमसे कुछ पाने के लिए कौए बनकर ही आते हैं। इसका अनादर इसलिए किया जाता है, क्योंकि काँव-काँव करके हमारा सिर खा जाते हैं। इसकी कर्कश वाणी किसी को नहीं भाती। हालॉकि किसी प्रियजन के आगे की सूचना यह अपनी कर्कश आवाज मे ही देता है ।
3. गिलहरी के घायल बच्चे का उपचार किस प्रकार किया गया?
उत्तर:- 
लेखिका गिलहरी के घायल बच्चे को उठाकर अपने कमरे में ले गई। रुई से उसका खून पोंछकर उसके घावों पर पेंंसिलिन का मरहम लगाया। उसकी भूख मिटाने के लिए रुई की बत्ती दूध में भिगोकर उसके मुँह पर लगाई गई। पर दूध की बूँदे मुँह के दोना तरफ गिर गई । कई घंटे के उपचार के बाद वह उसके मुँह में पानी की एक बॅूंद टपकाने में सफल हुई। तीन दिन में वह स्वस्थ हो गया।
4. लेखिका का ध्यान आकर्षित करने के लिए गिल्लू क्या करता था?
उत्तर:- 
लेखिका का ध्यान आकर्षित करने के लिए गिल्लू उनके पैरों तक आकर सर्र से परदे पर चढ़ जाता और फिर उसी तेजी से उतरता। उसका यह दौड़ने का क्रम तब तक चलता जब तक लेखिका उसे पकड़ने के लिए न उठ जाती।
5. गिल्लू को मुक्त करने की आवश्यकता क्यों समझी गई और उसके लिए लेखिका ने क्या उपाय किया?
उत्तर:- 
गिल्लू को मुक्त करने की आवश्यकता इसलिए पड़ी क्योंकि वह उसका पहला बसंत था। बाहर की गिलहरियाँ खिड़की की जाली के पास आकर चिक-चिक करके कुछ-कुछ कहने लगीं। उस समय गिल्लू जाली के पास आकर बैठ जाता था और उन्हें निहारता रहता था। तब लेखिका को लगा के अब गिल्लू को मुक्त कर देना चाहिए। वह अपने साथियों से मिलना चाहता था। लेखिका ने उसे मुक्त करने के लिए जाली का कोना खोल दिया ताकि इस मार्ग से गिल्लू आ-जा सके।

6. गिल्लू किन अर्थों में परिचारिका की भूमिका निभा रहा था?
उत्तर:- 
एक बार लेखिका मोटर-दुर्घटना में घायल होकर कुछ दिन तक अस्पताल में रही। अस्पताल से घर आने पर गिल्लू ने उसकी सेवा की। वह लेखिका के तकिए के सिरहाने बैठकर अपने नन्हे-नन्हे पंजों से उसके सिर और बालों को इतने हौले-हौले सहलाता रहता कि उसका वहाँ से हटना लेखिका को किसी परिचारिका के हटने के समान लगता। इस प्रकार लेखिका की अस्वस्थता में गिल्लू ने परिचारिका की भूमिका निभाई।
7. गिल्लू को किन चेष्टाओं से यह आभास मिलने लगा था कि अब उसका अंत समय समीप है ?
उत्तर:- 
जब गिल्लू का अंत समय आया तो उसने खाना-पीना छोड़ दिया। वह घर से बाहर भी नहीं गया। गिल्लू अपने अंतिम समय में झूले से उतरकर लेखिका के बिस्तर पर निश्चेष्ट लेट गया। उसके पंजे पूरी तरह ठंडे पड़ चुके थे। वह रात भर लेखिका की ऊँगली पकड़ें रहा और प्रभात होने तक वह सदा के लिए मौत की नींद सो गया।
8. 'प्रभात की प्रथम किरण के स्पर्श के साथ ही वह किसी और जीवन में जागने के लिए सो गया' - का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:- 
इस कथन का आशय है कि प्रातः कालीन सूर्य की किरणों के साथ ही गिल्लू ने अपना शरीर त्याग दिया। किसी अन्य जीवन में जन्म लेने के लिए उसने अपने प्राण छोड़ दिए। लेखिका को यह विश्‍वास है
9. सोनजुही की लता के नीचे बनी गिल्लू की समाधि से लेखिका के मन में किस विश्वास का जन्म होता है ?
उत्तर:- 
सोनजुही की लता के नीचे बनी गिल्लू की समाधि से लेखिका के मन में इस विश्वास का जन्म होता था कि एक दिन गिल्लू जूही के छोटे से पत्ते के रूप में अवश्य खिलेगा और वह फिर से उसे अपने आस-पास अनुभव कर पाएगी। यह विश्वास उन्हें संतोष देता था।


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