Sunday, April 28, 2013

हिंदी-स्पर्श-पाठ-1 धूल- प्रश्नोत्तर

                                                                   पाठ्यपुस्तक- स्पर्श
                        पाठ-1 धूल
    प्रश्नोत्तर
      प्रश्नों के उत्तर 25-30 शब्दों में
प्रश्न-1..धूल के बिना किसी शिशु की कल्पना क्यो नहीं की जा सकती?
उत्तर- माँ और और मातृभूमि का जीवन में बहुत महत्तव है। माँ की गोद से बच्चा उतरकर मातृभूमि पर घुटनों के बल चलना सीखता है फिर धूल से सनकर विविध खेल खेलता है। शिशु का बचपन मातृभूमि की गोद में धूल से सनकर निखर उठता है. यह धूल ही है जो शिशु के मुँह पर लगकर उसकी स्वभाविक सुंदरता को निखारती है इसलिये धूल के बिना किसी शिशु की कल्पना नहीं की जा सकती अभिजातवर्ग ने प्रसाधन- सामग्री में बडे- बडे अविष्कार किये परंतु शिशु के मुहँ पर छाई वास्तविक गोधूलि की तुलना में वह सामग्री कोई मूल्य नहीं रखती।
प्रश्न—2. हमारी सभ्यता धूल से क्यों बचना चाहती है
उत्तर- हमारी सभ्यता धूल से बचना चाहती है क्योंकि धूल के प्रति उनमें हीन भावना है। धूल को सुंदरता के लिए खतरा माना गया है। इस धूल से बचने के लिए ऊँचे-ऊँचे आसमान में घर बनाना चाहते हैं जिससे धूल से उनके बच्चे बचें। वे कृत्रिम चीज़ों को पसंद करते हैं, कल्पना में विचरते रहना चाहते हैं, वास्तविकता से दूर रहते हैं। वह हीरों का प्रेमी है धूल भरे हीरों का नहीं। धूल की कीमत को वह नहीं पहचानती।
प्रश्न—3.अखाडे की मिट्टी की क्या विशेषता होती है?
उत्तर- अखाड़े की मिट्टी साधारण मिट्टी नहीं होती। यह बहुत पवित्र मिट्टी होती है। यह मिट्टी तेल और मट्ठे से सिझाई हुई होती है। इसको देवता पर चढ़ाया जाता है। पहलवान भी इसकी पूजा करते हैं। यह उनके शरीर को मजबूत करती है।वही इसमें चारों खाने चित्त होने पर विश्व-विजेता होने के सुख का अहसास कराती है। संसार में उनके लिए इस मिट्टी से बढ़कर कोई सुख नहीं।
प्रश्न—4.श्रद्धा, भक्ति, स्नेह, की व्यंजना के लिये धूल सर्वोत्तम साधन किस प्रकार है?
उत्तर- श्रद्धा विश्वास का, भक्ति ह्रदय की भावनाओं का और स्नेह प्यार के बंधन का प्रतीक है। व्यक्ति धूल को माथे से लगाकर उसके प्रति अपनी भक्ति व्यक्त करते है, योद्धा धूल को आखों से लगाकर उसके प्रति अपनी श्रद्धा जताते हैं। हमारा शरीर भी मिट्टी से बना है। इस प्रकार धूल अपने देश के प्रति श्रद्धा, भक्ति, स्नेह, की व्यंजना के लिये धूल सर्वोत्तम साधन है।
प्रश्न—5.इस पाठ में लेखक ने नगरीय सभ्यता पर क्या व्यंग्य किया है?
उत्तर-इस पाठ में लेखक ने बताया है कि जो लोग गावों से अभी भी भी जुडे हुये है वे धूल के बिना शिशु की कल्पना भी नहीं कर सकते। वे धूल से सने शिशु को धूल भरा हीरा कहते हैं। आधुनिक नगरीय सभ्यता बच्चो को धूल में खेलने से मना करती हैं। नगर मे लोग बाहरी वातावरण, बनावटीपन, नकली और चकाचौंध भरी दुनिया में जीते है। यहाँ के लोगो को काँच के हीरे ही प्यारे लगते हैं। नगरों में गोधूली नहीं बल्कि  धूल- धक्कड होती है। 

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